HIV की खोज किसने की
HIV (human immunodeficiency virus ) का नाम सुनते ही लोग डरते है क्योकि एच.आई.वी एक अतिसूक्ष्म विषाणु हैं जिसकी वजह से एड्स हो सकता है और एड्स एक ऐसी बीमारी है जिसका कोई इलाज नही है इसलिए लोग इस से डरते है एड्स स्वयं में कोई रोग नहीं है बल्कि एक संलक्षण है।
यह मनुष्य की अन्य रोगों से लड़ने की नैसर्गिक प्रतिरोधक क्षमता को घटा देता हैं प्रतिरोधक क्षमता के क्रमशः क्षय होने से कोई भी अवसरवादी संक्रमण, यानि आम सर्दी जुकाम से ले कर फुफ्फुस प्रदाह, टीबी, क्षय रोग, कर्क रोग जैसे रोग तक सहजता से हो जाते हैं और उनका इलाज करना कठिन हो जाता हैं और मरीज़ की मृत्यु भी हो सकती है।
एड्स वर्तमान युग की सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है यानी कि यह एक महामारी है। एड्स के संक्रमण के तीन मुख्य कारण हैं – असुरक्षित यौन संबंधो, रक्त के आदान-प्रदान तथा माँ से शिशु में संक्रमण द्वारा दुनिया भर के डॉक्टर तीन दशक से ह्यूमन इम्यूनो डेफिशिएंसी वायरस यानी एचआईवी के बारे में जानकारी जुटा रहे हैं.
इन सालों में तीन करोड़ से अधिक लोग एड्स के कारण अपनी जान गंवा चुके हैं.
HIV की खोज किसने की
Who discovered HIV? in Hindi – एचआईवी सबसे पहली बार 19वीं सदी की शुरुआत में जानवरों में मिला था. माना जाता है माना जाता है कि सबसे पहले इस रोग का विषाणु: एच.आई.वी, अफ्रीका के खास प्राजाति की बंदर में पाया गया
और वहा के लोग बंदर खाते थे जिस से ये इंसानों में आ गया वहीं से ये पूरी दुनिया में फैला अभी तक इसे लाइलाज माना जाता है लेकिन दुनिया भर में इसका इलाज पर शोधकार्य चल रहे हैं
और सबसे पहले 1981 में एड्स की पहचान हुई. लॉस एंजिलिस के डॉक्टर माइकल गॉटलीब ने पांच मरीजों में एक अलग किस्म का निमोनिया पाया. इन सभी मरीजों में रोग से लड़ने वाला तंत्र अचानक कमजोर पड़ गया था.
ये पांचों मरीज समलैंगिक थे इसलिए शुरुआत में डॉक्टरों को लगा कि यह बीमारी केवल समलैंगिकों में ही होती है. इसीलिए एड्स को ग्रिड यानी गे रिलेटिड इम्यून डेफिशिएंसी का नाम दिया
1982 में ग्रिड का नाम बदल कर एड्स यानी एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशिएंसी सिंड्रोम रखा गया.और फिर 1984 में, पेरिस में पाश्चर संस्थान, और डॉ जे लेवी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में, सैन फ्रांसिस्को, डॉ गालो,
डॉ ल्यूक मॉन्टैग्नियर के नेतृत्व में अनुसंधान समूहों सब एड्स के कारण के रूप में एक रेट्रोवायरस की पहचान की और 1986 में पहली बार इस वायरस को एचआईवी यानी ह्यूमन इम्यूनो डेफिशिएंसी वायरस का नाम मिला.
इसके बाद से दुनिया भर के लोगों में एड्स को ले कर जागरूकता फैलाने के अभियान शुरू हो गए. कॉन्डोम के इस्तेमाल को केवल परिवार नियोजन के लिए ही नहीं, बल्कि एड्स से बचाव के रूप में देखा जाने लगा. 1988 से हर साल एक दिसंबर को वर्ल्ड एड्स डे के रूप में मनाया जाता है.
1991 में पहली बार लाल रिबन को एड्स का निशान बनाया गया. यह एड्स पीड़ित लोगों के खिलाफ दशकों से चले आ रहे भेदभाव को खत्म करने की एक कोशिश थी.अक्सर एच.आई.वी से संक्रमित लोगों में लम्बे समय तक एड्स के कोई लक्षण नहीं दिखते
दीर्घ समय तक 3, 6 महीने या अधिक एच.आई.वी भी औषधिक परीक्षा में नहीं उभरते अधिकांशतः एड्स के मरीज़ों को ज़ुकाम या विषाणु बुखार हो जाता है पर इससे एड्स होने की पहचान नहीं होती
दुनिया भर में इस समय लगभग चार करोड़ 20 लाख लोग एच.आई.वी का शिकार हैं। इनमें से दो तिहाई सहारा से लगे अफ़्रीकी देशों में रहते हैं और उस क्षेत्र में भी जिन देशों में इसका संक्रमण सबसे ज़्यादा है वहाँ हर तीन में से एक वयस्क इसका शिकार है। दुनिया भर में लगभग 14,000 लोगों के प्रतिदिन इसका शिकार होने के साथ ही यह डर बन गया है
कि ये बहुत जल्दी ही एशिया को भी पूरी तरह चपेट में ले लेगा जब तक कारगर इलाज खोजा नहीं जाता, एड्स से बचना ही एड्स का सर्वोत्तम उपचार है
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में हाल के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में लगभग 14-16 लाख लोग एचआईवी / एड्स से प्रभावित है संयुक्त राष्ट्र कि 2011 के एड्स रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 10 वर्षों भारत में नए एचआईवी संक्रमणों की संख्या में 50% तक की गिरावट आई है
इसका कोई इलाज तो नही है पर इसे कुछ ध्यान रख के बचा जा सकता है अपने जीवनसाथी के प्रति वफादार रहें एक से अधिक व्यक्ति से यौन संबंध ना रखें और यौन संबंध के समय कंडोम का सदैव प्रयोग करें
यदि आप एच.आई.वी संक्रमित या एड्स ग्रसित हैं तो अपने जीवनसाथी से इस बात का खुलासा अवश्य करें। बात छुपाये रखनें तथा इसी स्थिती में यौन संबंध जारी रखनें से आपका साथी भी संक्रमित हो सकता है
और आपकी संतान पर भी इसका प्रभाव पड़ सकता है यदि आप एच.आई.वी संक्रमित या एड्स ग्रसित हैं तो रक्तदान कभी ना करें यदि आप को एच.आई.वी संक्रमण होने का संदेह हो तो तुरंत अपना एच.आई.वी परीक्षण करा लें।
उल्लेखनीय है कि अक्सर एच.आई.वी के कीटाणु, संक्रमण होने के 3 से 6 महीनों बाद भी, एच.आई.वी परीक्षण द्वारा पता नहीं लगाये जा पाते। अतः तीसरे और छठे महीने के बाद एच.आई.वी परीक्षण अवश्य दोहरायें।
एड्स का एक बड़ा दुष्प्रभाव है कि समाज को भी संदेह और भय का रोग लग जाता है तो अब लोगो को सोच में बदलाव की जरूरत है और एड्स ग्रसित व्यक्ति के साथ अच्छा व्यवहार करे और उस अक आम जिन्दगी जीने का मोका दे
औषधी विज्ञान में एड्स के इलाज पर निरंतर संशोधन जारी हैं भारत, जापान, अमरीका, युरोपीय देश और अन्य देशों में इस के इलाज व इससे बचने के टीकों की खोज जारी है
हालांकी एड्स के मरीज़ों को इससे लड़ने और एड्स होने के बावजूद कुछ समय तक साधारण जीवन जीने में सक्षम हैं परंतु अंत में मौत निश्चित हैं एड्स लाइलाज हैं। इसी कारण आज यह भारत में एक महामारी का रूप हासिल कर चुका है
भारत में एड्स रोग की चिकित्सा महंगी है, एड्स की दवाईयों की कीमत आम आदमी की आर्थिक पहुँच के परे है। कुछ विरल मरीजों में सही चिकित्सा से 10-12 वर्ष तक एड्स के साथ जीना संभव पाया गया है, किंतु यह आम बात नही है.
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Hiv aids jaisi koi bimari hoti hi nhi hai ap pata kar skte ho!
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