पोखरण परमाणु परीक्षण इतिहास Pokhran Nuclear Test History
हम सभी जानते हैं किसी भी देश की सुरक्षा के लिए उसके हथियार बहुत जरूरी होते हैं चाहे वह किसी भी तरह के हो और आज के समय में लगभग बहुत से देशों के बाद पास अपनी परमाणु शक्ति है जिससे वे एक दूसरे देश पर हमला करके कुछ ही समय में सब कुछ ख़त्म कर सकते हैं.
लेकिन यह सभी परमाणु हथियार सुरक्षा के लिए बनाए जाते है.और आज के समय में अमेरिका चीन जापान जैसे देशों के पास अपनी परमाणु शक्ति मौजूद है और इसमें भारत का भी नाम आता है. तो आज की पोस्ट में हम आपको बताएंगे कि किस तरह से भारत में परमाणु बम का आविष्कार किया गया.
उस का सफल परीक्षण किया गया और इस परमाणु बम के आविष्कार की पूरी कहानी इस पोस्ट में विस्तार से बताएंगे तो आप इस पोस्ट को पूरा और अंत तक जरूर देखें .
पोखरण परमाणु परीक्षण 1
18 मई 1974 के दिन उस समय के प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पास एक फोन आने का इंतजार होता है और जब वह फोन का इंतजार कर रही होती है तो कुछ ही देर बाद उनके पास एक फोन आता है और फोन करने वाला आदमी कहता है बुद्ध मुस्कुराए और इस बुद्ध मुस्कुराए शब्द के पीछे एक बहुत बड़ी कामयाबी का मतलब था जिसको शायद कुछ ही लोग जानते थे. क्योंकि जो फोन इंदिरा गांधी के पास आया था उसमें बुद्ध मुस्कुराए शब्द का मतलब था कि भारत ने पोखरण में परमाणु बम का सफलतापूर्वक परीक्षण कर लिया है.
पोखरण में परमाणु बम का सफल परीक्षण करने के बाद भारत दुनिया में पहला ऐसा देश बन गया था. जिसने यूनाइटेड नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल का सदस्य ना होते हुए भी भी परमाणु बम के परीक्षण करने की हिम्मत की और परमाणु बम का सफलतापूर्वक आविष्कार करने के बाद भारत भी उन देशों में शामिल हो गया. जिनके पास परमाणु शक्ति थी लेकिन दुनिया अभी भी इस बात को नहीं मानती थी कि भारत के पास परमाणु शक्ति है. क्योंकि उनका मानना था कि भारत में अभी परमाणु तकनीक हासिल करने की दिशा में सिर्फ एक ही कदम बढ़ाया है.
पोखरण परमाणु परीक्षण 2
जैसा की हमने आपको ऊपर बताया भारत ने पोखरण में परमाणु बम का सफलतापूर्वक आविष्कार कर लिया है इस बात को दुनिया मानने के लिए तैयार नहीं थी और दुनिया का मानना था. कि भारत ने परमाणु शक्ति की ओर सिर्फ एक कदम बढ़ाया है लेकिन दुनिया में तहलका मच गया जब भारत ने 11 मई 1998 से लेकर 13 मई 1998 तक 5 परमाणु बम का सफल परीक्षण किया उसके बाद भारत परमाणु शक्ति से रहित दुनिया का छठा देश बन गया.
परमाणु बम बनाने के लिए भारत को 1962 में बहुत ज्यादा मजबूर होना पड़ा क्योंकि 1962 में भारत और चीन के बीच एक युद्ध हुआ जिसमें चीन ने भारत को बुरी तरह से हरा दिया इसलिए भारत को परमाणु बम बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा और भारत को हराने के बाद 2 साल बाद चीन और भी मजबूत हो गया जब क्योंकि युद्ध के 2 साल बाद चीन ने परमाणु बम का सफल परीक्षण कर लिया. तो इस स्थिति में भारत को आगे जाकर अपनी सुरक्षा के लिए परमाणु बम का आविष्कार करना पड़ा.
इसी दौरान प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की इजाजत से 1974 में पहली बार पोखरण में परमाणु बम का सफल परीक्षण किया गया और इस ऑपरेशन को स्माइलिंग बुद्धा नाम दिया गया था.लेकिन भारत को परमाणु शक्ति से संपन्न देश का दर्जा पाने के लिए आगे चलकर और भी कई प्रकार के परमाणु टेस्ट करने थे. लेकिन अमेरिका और इसके अलावा दूसरे कई देशों के कारण भारत यह टेस्ट नहीं कर पा रहा था. लेकिन 1995 में उस समय के प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने परमाणु टेस्ट की बढ़ती हुई मांग को देखकर यह निर्णय लिया कि भारत को एक और परमाणु टेस्ट करना चाहिए.
लेकिन दुर्भाग्य से अमेरिका की एक सैटेलाइट ने भारत की परमाणु बम बनाने वाली गतिविधियों का पता लगा लिया और फिर भारत को यह प्रोग्राम बीच में ही छोड़ना पड़ा और फिर चुनाव का समय आ गया था और चुनाव होने के बाद भारत के नए प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी वाजपेई जी और वाजपेई जी भारत को पहले से ही परमाणु बम की टेस्टिंग करवाना चाहते थे.
क्योंकि वह चाहते थे की दुनिया को भारत की ताकत का पता परमाणु शक्ति से ही चल पाएगा और फिर 1998 में अटल बिहारी वाजपेई जी, डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम और राजगोपाल चिदंबरम के साथ मिलकर इस टेस्ट को गुप्त तरीके से चर्चा शुरू कर दी. इस टेस्ट का परीक्षण करने के लिए उन्होंने एक बार फिर से राजस्थान के पोखरण शहर को चुना लेकिन अब उनके सामने एक और परेशानी थी यह जगह पूरी तरह से खुली हुई थी और अमेरिका की सेटेलाइट ने भी इस तरह की गतिविधियों को रोकने के लिए अपनी नजरें गड़ाए थी.
भारत को अब की बार भी अगर सफल परीक्षण करना था. तो इस सेटेलाइट की आंखों में धूल झोंकने की जरूरत थी.और इस मिशन की जानकारी कुछ ही लोगों के पास थी जैसे कुछ चुनिंदा नेता या सेना के अधिकारियों के पास इसके अलावा देश के कुछ बड़े-बड़े नेताओं के पास और इस मिशन के चीफ कोऑर्डिनेटर बने डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम और डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी के डायरेक्टर डॉ राजगोपाल चिदंबरम और इस प्रोजेक्ट के शुरू होने के बाद.
इस पर काम करने वाले सभी वैज्ञानिकों को सेना की वर्दी पहनाई गई ताकि अमेरिका के सैटेलाइट टेस्टिंग वाली जगह को देखें तो भी यह लगे कि सेना के जवान हैं जो कि अपनी प्रैक्टिस करते हैं. और बम्ब को आर्मी के ट्रक में रखकर टेस्टिंग वाली जगह पर ले जाया गया.
और इस ऑपरेशन का नाम ऑपरेशन शक्ति दिया गया था क्योंकि इसमें 5 परमाणु बम का परीक्षण किया जाना था और फिर 11 मई 1998 से लेकर 13 मई 1998 तक यह पांचो टेस्ट बहुत ही गुप्त तरीके से सफलतापूर्वक परीक्षण कर लिए गया. इस टेस्ट के बाद भारत परमाणु शक्ति से लैस दुनिया का छठा देश बन गया.
लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका कनाडा और जापान जैसे देशों में इसकी आलोचना हुई और कई सालों तक भारत में दिए जाने वाली वैश्विक सुविधाओं पर रोक लगा दी गई लेकिन ब्रिटेन फ्रांस और रूस भारत के विरोध में नहीं बोल पाए और देश को परमाणु शक्ति से सक्षम बनाने के लिए उस समय के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई और को कभी नहीं भूला जा सकता है.
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